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    Home»bollywood»Explained: Thamma में बेताल, Kantara में दैव; फिल्मों में हॉरर-मिथक दिखाने की क्यों मची होड़?
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    Explained: Thamma में बेताल, Kantara में दैव; फिल्मों में हॉरर-मिथक दिखाने की क्यों मची होड़?

    MiliBy MiliOctober 29, 2025No Comments6 Mins Read
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    Explained: Thamma में बेताल, Kantara में दैव; फिल्मों में हॉरर-मिथक दिखाने की क्यों मची होड़?

    कुछ समय पहले हाथ, पैर और सिर काट देने वाली हिंसा-प्रधान फिल्मों का दौर आया था, अब सिनेमा के पर्दे पर खून पीने वाले सीन सूर्खियां बटोर रहे हैं. दिलचस्प ये कि इन दोनों ही तरह की अनेक फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त कारोबार किया है. बॉक्स ऑफिस कलेक्शन बताते हैं भारी संख्या में दर्शकों ने इन फिल्मों को देखने में दिलचस्पी जताई है. जैसे एनिमल ने वायलेंस को सफलता का फॉर्मूला सेट कर दिया उसी तरह कांतारा (kantara) ने हॉरर-मिथक को कामयाबी का मंत्र बना दिया है. आज के समय की फिल्मों में दिखाए जाने वाले हॉरर में साउंड ट्रैक रोंगटे नहीं खड़े करते बल्कि हास्य की चाशनी में लिपटे हैं और मिथक का कॉस्ट्यूम भी पहने हुए हैं.

    नवाजुद्दीन सिद्दीकी, आयुष्मान खुराना और रश्मिका मंदाना की थामा (Thamma) भी कांतारा के बाद एक ऐसी ही फिल्म है, जहां मिथक को बारह मसाला तेरह स्वाद बनाकर पेश किया गया है. गुजरे जमाने की फिल्मों में भूत-प्रेत, डायन-चुड़ैल या दैव प्रकोप को अंधविश्वास बताया जाता था लेकिन अब की फिल्मों में इसकी प्रस्तुति और नजरिया में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. पहले इस प्रकार की फिल्मों की कहानी के अंत में नायक प्रगतिशील और वैज्ञानिक सोच के साथ जीतता था और दर्शकों को शिक्षा और स्वास्थ्य की सीख दे जाता था लेकिन आज की ऐसी फिल्मों की मिथक गाथा में रोमांच के साथ उसका महिमामंडन अधिक होने लगा है.

    थामा के बेताल लोक ने चौंकाया

    कोई हैरत नहीं इन्हीं वजहों से थामा ने भी सक्सेस का एक लेवल तो पार कर ही लिया. यानी खास वर्ग के दर्शकों ने इस पर भी अपनी मुहर लगा दी. थामा के बेताल लोक में जिस तरह के खौफनाक और थोड़े घिनौने स्वरूप देखने को मिले हैं- उसकी सफलता चौंकाती है. वास्तव में इस तरह की फिल्मों को हॉरर-कॉमेडी से एक कदम आगे हॉरर-मिथक जॉनर कहा जाना चाहिए. हॉरर अपना नया वैरियंट तलाश रहा है. इसे नई तरह के मनोरंजन का विकास कह सकते हैं. फिल्मकारों को लगने लगा है दर्शकों का मिजाज अब कुछ नया और अनोखा खोज रहा है. मनोरंजन के नए-नए वैरियंट इसी खोज के परिणाम हैं.

    देखना है सब्जेक्ट की तलाश का लेवल और कहां तक पहुंचता है. मनोरंजन के कैसे-कैसे फ्लेवर दिखाई देते हैं. वैसे हॉरर-कॉमेडी बनाम हॉरर-मिथक ज़ॉनर की फिल्मों के नए वैरियंट का सूत्रधार मैडॉक फिल्म्स है. मैडॉक ने हॉरर को आख्यान का रूप दिया है. इसका नाम है- मैडॉक हॉरर कॉमेडी यूनिवर्स. हॉलीवुड में हॉरर-मिथक एक समय कामयाबी का बड़ा हिट फॉर्मूला रहा है. मैडॉक फिल्म्स ने उसे हिंदी में भारतीय दंतकथाओं का मॉडर्न रूपक गढ़ा है. इसे बॉलीवुड के पुनरुत्थान काल का एक चैप्टर भी कह सकते हैं. मैडॉक फिल्म्स ने अब तक स्त्री, भेड़िया, स्त्री 2, बाला और अब धामा जैसी फिल्में बनाई हैं. इसमें थामा के निर्देशक हैं आदित्य सरपोतदार हैं लेकिन बाकी फिल्मों के निर्देशक अमर कौशिक हैं, जिनकी अगली फिल्म महावतार है. इस फिल्म में विकी कौशल दिखाई देंगे.

    बेताल और भेड़िया में खून पीने की होड़

    थामा में बेताल लोक की अजीबोगरीब कहानी है. यह विश्वसनीय नहीं लगती. लेकिन दर्शकों को दंतकथा पर आधारित एक फैंटेसी में जरूर ले जाती है. इसकी खासियत ये है कि आयुष्मान खुराना, रश्मिका मंदाना और नवाजुद्दीन सिद्दीकी का दांतों वाला ड्रेकूला रूप दर्शकों को ना तो बहुत डराता है और ना ही हास्य पैदा करता है बल्कि रोमांच अधिक प्रदान करता है. आगे क्या होगा- इसका कौतूहल जगाए रखता है. तीनों ही कलाकारों की परफॉर्मेंस दर्शकों को मोहित करती हैं. बेताल बनी रश्मिका कहीं-कहीं विष कन्या सी लगती है तो आयुष्मान नाग देवता लगने लगते हैं वहीं नवाजुद्दीन पाताल लोक के क्रूर राक्षस. वह विलेन बने हैं.

    Thamma

    मिथक का मोहक मायाजाल

    बेताल की कहानी हर किसी के बचपन से जुड़ी रही है. बेताल पच्चीसी या बिक्रम बेताल को हम सबने पहले भी फिल्मों और टीवी सीरियलों में देखा है. लेकिन यहां बेताल का रूप बदल गया है. बेताल का जन्म रक्तबीज राक्षस को खत्म करने के लिए हुआ था- फिल्म में इसे बताया गया है. वह इंसान के खून का प्यासा है तो बेताल के खून का प्यासा भेड़िया है. फिल्म की कहानी बेताल और इंसान के बीच लड़ाई से शुरू होकर बेताल और भेड़िया की लड़ाई में बदल जाती है. मिथक का मायाजाल दर्शकों को उलझा देता है लेकिन कहीं भी यह नहीं बताया जाता कि इस मिथक की ऐसी कहानियों का आज के दौर से कोई रिश्ता नहीं. थामा के अंदर बड़ी ही खूबसूरती से मैडॉक की अन्य फिल्मों- स्त्री, भेड़िया की यादों और परछाई को बनाकर रखा गया है. गेस्ट रोल में वरुण धवन भेड़िया बनकर आते हैं.

    कांतारा में दैव का चमत्कार

    इसी तरह कांतारा में ऋषभ शेट्टी ने जिस हजारों साल पुरानी परंपरा और लोककथा को दिखाकर बॉक्स ऑफिस पर छप्पड़ फाड़ कमाई की, और दैव को परिभाषित किया है, वह भी आज की वैज्ञानिकता से परे है. कांतारा में दैव जिस तरह के करतब दिखाते हैं, वे व्यावहारिक तौर पर सच हैं या नहीं- ये प्रमाणित नहीं है. लेकिन फिल्म में उसे जस्टीफाई करके दिखाया गया है. जंगल की सुरक्षा, आदिवासियों का हक, लोकनृत्य की अपनी अलग अहमियत है, उसे इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन इंसान पर दैव का आना, उसका चीखना और चमत्कार हो जाना-अपने आप में चौंकाने वाला ही लगता है. लेकिन दर्शकों ने इसे खूब पसंद किया.

    मैडॉक फिल्म्स की पेशकश हों, ऋषभ शेट्टी की कांतारा हो या फिर हाल की कुछ और फिल्मों मसलन काजोल की ‘मां’, नेटफ्लिक्स पर दिखाई जाने वाली ‘वश’ और ‘शैतान’ आदि में हॉरर-मिथक दिखाने की होड़ सी दिखी? हालांकि काजोल की ‘मां’ को कामयाबी नहीं मिल सकी लेकिन यहां भी देवी का वही असर देखने को मिला जैसा कि दैव का. आने वाले समय में मैडॉक फिल्म्स हॉरर कॉमेडी यूनिवर्स की लंबी फेहरिस्त लेकर आने वाला है. देखना है मनोरंजन का नया वैरियंट कब तक आता है.

    हॉरर दिखाने के लिए फैंटेसी पर जोर

    गौरतलब है कि आज से करीब दो-ढाई दशक पहले विक्रम भट्ट जब राज़ या फिर रामगोपाल वर्मा भूत और डरना मना है आदि डरावनी फिल्मों को लेकर आए थे तब उसे नए दौर का सबसे एडवांस हॉरर माना गया था. उस हॉरर में बिपासा बसु या उर्मिला मातोंडकर के अलावा प्रेतात्मा का महज भाव था जिसका सामना तांत्रिक के ताम झाम से होता था लेकिन राहत चिकित्सालय में मिलती है. यहां तक कि जाह्नवी कपूर की हॉरर मूवी घोस्ट स्टोरीज और रूही का भी क्लाइमैक्स अलग नहीं था.

    उन फिल्मों में परंपरा और मिथक को कहानी में शामिल नहीं किया गया था. अब मैडॉक फिल्म्स ने हॉलीवुड के आजमाए हुए हिट फॉर्मूला से इस स्थान को भरने का प्रयास किया. हॉरर में भयावहता दिखाने के लिए फैंटेसी का उपयोग खूब कर रहा है. उसकी छाप अनेक फिल्मों पर नजर आने लगी. कुछ हद तक भेड़ चाल भी शुरू हो गई. दर्शकों को फिलहाल पसंद तो आ रहा है लेकिन देखना होगा इस होड़ का अंत आखिर कहां होता है.

    यह भी पढ़ें ;मोहब्बतें अमिताभ बच्चन की दूसरी ज़ंजीर साबित हुई, जब शहंशाह का बादशाह से हुआ सामना

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