तारीख- 15 अगस्त 1975 आज से ठीक 50 साल पहले एक फिल्म रिलीज हुई। नाम था शोले। फिल्म रिलीज हुई तो 2-3 दिनों तक थिएटर खाली पड़े रहे, फिल्म से जुड़े लोगों ने मान लिया कि ये तो फ्लॉप हो गई, लेकिन एक हफ्ते में फिल्म ऐसी चल निकली कि 6 सालों तक सिनेमाघरों में लगी रही। फिल्म देखने वालों का ऐसा हुजूम आया कि टिकट मिलनी भी मुश्किल हो गई। उस दौर में ब्लैक में इस कदर टिकटें बिकीं की टिकट ब्लैक करने वालों ने मुनाफे से घर खरीद लिए। कितने आदमी थे…., होली कब है…., बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना, ये वो डायलॉग्स हैं, जो सालों बाद भी लोगों को मुंह जुबानी याद हैं। इन्हीं में एक और आइकॉनिक डायलॉग था, ‘हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं’, जिसे जेलर बने असरानी ने कहा था। उनके रोल को पहले तो मामूली समझकर हटा दिया गया, लेकिन फिर ये रोल ऐसा हिट रहा कि लोग आज भी उन्हें जेलर ही कहते हैं। शोले के 50 साल पूरे होने के खास मौके पर जेलर बने असरानी ने दैनिक भास्कर से बात की। आज उन्हीं की जुबानी पढ़िए हिंदी सिनेमा का नक्शा बदलने वाली फिल्म के बनने की कहानी- शोले एक अद्वितीय घटना और एक अजीब सा चैप्टर है। लोग इसकी तुलना हॉलीवुड स्पैगेटी फिल्म से करते हैं। मैं स्पैगेटी फिल्म का मतलब नहीं समझता था। एक बार दिल्ली किसी कार्यक्रम के लिए गया था। वहां इंग्लैंड के एक जर्नलिस्ट से मुलाकात हुई। उन्होंने ‘शोले’ देखी थी। मुझे देखते ही पहचान गए कि मैंने ‘शोले’ में काम किया है। उन्होंने ‘शोले’ को स्पैगेटी फिल्म बताया। जब मैंने इसका मतलब पूछा तो उन्होंने कहा कि इसका मतलब आइकॉनिक होता है। हमें तो यह आम फिल्म जैसी लग रही थी। जैसी बाकी फिल्मों की शूटिंग होती थी वैसी इसकी भी हुई, लेकिन यह कल्ट फिल्म बनी। ‘शोले’ मुंबई के एक थिएटर में लगातार 6 साल तक चली। बाकी जगह की हिस्ट्री तो सबको मालूम है। राइटर जोड़ी सलीम-जावेद ने फिल्म शोले लिखी थी। वैसे तो फिल्म में डाकू गब्बर सिंह का रोल अमजद खान ने निभाया था, लेकिन असरानी बताते हैं कि इस फिल्म को निभाने के लिए कई दिग्गज एक्टर्स के बीच होड़ मच गई थी। लेकिन ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि डैनी ने इस किरदार को ठुकरा दिया था। असरानी ने बताया, आपको यकीन नहीं होगा की गब्बर सिंह का रोल पहले डैनी को ऑफर हुआ था। वो हमारे मित्र हैं और फिल्म इंस्टीट्यूट में मुझसे बहुत जूनियर थे। जब मैं फिल्म इंस्टीट्यूट में इंस्ट्रक्टर था, तब डैनी वहां स्टूडेंट थे। उस समय जया भादुड़ी, शत्रुघ्न सिन्हा, शबाना आजमी, रेहाना सुल्तान, नवीन निश्चल मेरे स्टूडेंट थे। डैनी उस समय फिरोज खान की फिल्म ‘धर्मात्मा’ कर रहे थे। जब डैनी ने फिरोज कुमार को फिल्म ‘शोले’ के बारे में बताया तो उन्होंने कहा की तुम पागल हो गए क्या? मैंने तुमको जो रोल दिया है वैसा रोल कोई जिंदगी भर नहीं देगा और तुम डाकू का रोल करने जा रहे हो। डैनी बहुत ही सीधे-साधे इंसान है। फिरोज खान की बात सुनकर उन्होंने ‘शोले’ का ऑफर ठुकरा दिया। सुनील दत्त की शर्त नहीं मानी, तो उन्होंने ठुकरा दिया गब्बर सिंह का रोल असरानी ने इस पर बताया, सुनील दत्त ने महबूब खान की फिल्म ‘मदर इंडिया’ में डाकू का रोल निभाया था। इसी फिल्म से सुनील दत्त का करियर बन गया था। डैनी के बाद गब्बर सिंह का रोल सुनील दत्त को ऑफर हुआ। उन्होंने सोचा कि फिल्म में धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन हैं तो फिल्म में उनका नाम पहले आना चाहिए। शायद इस बात से ‘शोले’ के मेकर सहमत नहीं हुए होंगे। इस लिए सुनील दत्त ने फिल्म छोड़ दी। फिर रमेश सिप्पी, शत्रुघ्न सिन्हा के पास गए। पता नहीं शत्रुघ्न सिन्हा ने क्या डिमांड की, शत्रुघ्न के हाथ से भी गब्बर सिंह का रोल निकल गया। फाइनली नेशनल कॉलेज में सलीम-जावेद एक नाटक देखने गए थे। वहां पर उन्होंने अमजद खान का एक नाटक देखा और रमेश सिप्पी को गब्बर सिंह के रोल के लिए अमजद खान के नाम का सुझाव दिया। जिस रोल को खोने से डर रहे थे अमजद खान, उसने ही रच दिया इतिहास मेरी डबिंग जब राजकमल स्टूडियो चल रही थी तब अमजद खान की आवाज का टेस्ट चल रहा था। अमजद खान ने मुझसे कहा कि आज मेरी जिंदगी का फैसला होना है, पता नहीं मेरी आवाज को फाइनल करेंगे कि नहीं। रिकॉर्डिस्ट मंगेश देसाई ने कहा कि इनकी आवाज में क्वालिटी तो है। सलीम- जावेद बोले कि अब क्या करें, इसने तो आवाज अप्रूव कर दिया। यह आश्चर्य की बात है कि ‘मुगल-ए-आजम’ के बाद ‘शोले’ के डायलॉग अमजद खान की आवाज में रिकॉर्ड ब्रेकिंग हुई। बड़े-बड़े बैनर लग गए कि गब्बर की असली पसंद बिस्कुट। इससे पहले विलेन का कोई नाम नहीं लेता था। सबसे ज्यादा डायलॉग ऑडियो कैसेट बिके, यह भी अपने आप में एक रिकॉर्ड था। अमजद खान की आंखों में आंसू आ गए थे-असरानी मैं गुजरात वडोदरा में एक प्रोग्राम में जा रहा था। मैं गुजराती फिल्मों में काम कर रहा था। अमजद खान के साथ मुझे भी इनवाइट किया गया था। अमजद खान का छोटा बच्चा भी साथ गया था। उसे प्यास लगी तो हम लोग रास्ते में एक छोटी सी दुकान पर कोल्ड ड्रिंक लेने उतरे। बच्चे ने जैसी ही कोल्ड ड्रिंक की बोतल खोली, पीछे से आवाज आई ‘कितने आदमी थे’। मैं चौंक गया कि यह आवाज कहां से आ गई। अमजद खान की आवाज का कैसेट हर तरफ चल रहा था। मैंने देखा कि अमजद खान की आंखों में आंसू आ गए थे। वो सोच रहे थे कि इसी आवाज को लोगों ने रिजेक्ट कर दिया था। अब जानिए कैसे बना शोले में अंग्रेजों के जमाने के जेलर का किरदार- असरानी ने फिल्म में अपने रोल पर कहा- मुझे फिल्म के बारे में कुछ भी पता नहीं था। मुझे लगा कि प्रोड्यूसर-डायरेक्टर एक रोल के लिए बुला रहा है। मैं मिलने गया तो रमेश सिप्पी के साथ सलीम-जावेद भी मिले। जावेद साहब ने स्क्रिप्ट सुनाई कि अटेंशन हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं। यह किरदार बेवकूफ हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि दुनिया का सबसे समझदार आदमी यही है। मैंने सोचा कि ऐसा किरदार तो कभी नहीं निभाया। उन्होंने मुझे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान की एक किताब पढ़ने के लिए दी। उसमें हिटलर के 10-12 पोज थे। उन्होंने बताया कि हिटलर पब्लिक के बीच आने से पहले अपने कमरे में फोटोग्राफर के साथ आर्मी की ड्रेस पहनकर रिहर्सल करता था। उसमें से 3-4 पोज मैंने पकड़े और किरदार में वैसा ही एटीट्यूड लाया। फिल्म लंबी हो गई थी तो मेरा सीन काट दिया गया था। नागपुर में एक जर्नलिस्ट ने वह सीन देखा और कहा कि वह सीन तो फिल्म की जान है। फिर बाद में मेरे सीन को जोड़ा गया। आज भी लोग मुझे इस किरदार की वजह से पहचानते हैं। मुझे लग गया था कि जावेद साहब ने जो पढ़कर सुनाया था अगर उसमें गलती की तो डायरेक्टर तो मारेंगे ही, राइटर भी मारेंगे। शूटिंग शुरू होने से 10 दिन पहले तक मैंने डायलॉग की प्रैक्टिस की। मुझे अशोक कुमार की एक बात याद थी कि डायलॉग याद कर लेना बाकी डायरेक्टर पर छोड़ देना। वो अपने हिसाब से काम निकलवा लेंगे। उसी हिसाब से मैंने शूटिंग पर जाने से पहले पूरी तैयारी कर ली थी। मुझे नहीं लगता कि जेलर के अलावा कोई और किरदार निभा सकता था। सब किरदार बहुत मुश्किल हैं। हां, एक किरदार ठाकुर के नौकर राम लाल का निभा सकता था। इस किरदार को सत्येन कप्पू ने निभाया था। जेल में अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र के साथ बहुत ही दिलचस्प सीन था। सिर्फ एक खबर मिली है कि जेल में सुरंग बन रही है। जिसमें कैदी इन्वॉल्व हैं। मुझे उसका निरीक्षण करना था। उसमें राइटर ने हर कैदी का किरदार बताया है। यह बहुत कमाल की बात थी। बिना किसी डायलॉग के वह सीन बहुत अच्छा हुआ था। 15 अगस्त 1975 को जब फिल्म शोले रिलीज हुई तो शुरुआत में थिएटर खाली ही रहे। मेकर्स मानने लगे थे कि शायद ये फिल्म फ्लॉप हो गई। असरानी ने जब खाली थिएटर देखे तो वो काफी परेशान हो गए। अमजद खान भी काफी उदास थे। लेकिन किसे पता था कि ये फिल्म इतिहास रचने वाली है। इस पर असरानी ने कहा, मैं तो मुंबई के जुहू में रहता हूं। वहां चंदन थिएटर में फिल्म (शोले) लगी थी। मैं फिल्म देखने गया तो 3 बजे के शो में पूरा थिएटर खाली था। मैं बहुत नर्वस हो गया। पूरी फिल्म नहीं देख पाया। मैं डिप्रेशन में आ गया कि ऐसा क्या हो गया कि लोग फिल्म देखने नहीं आए? एक दिन मैं महबूब स्टूडियो में एक फिल्म की शूटिंग कर रहा था। स्टूडियो के समाने ही अमजद खान का घर था। शूटिंग से थोड़ा समय मिला तो अमजद खान से मिलने चला गया। वह भी बहुत उदास थे। फिल्म ना चलने की वजह उनको भी समझ में नहीं आई। उन्होंने कहा कि लगता है बस हाथ से छूट गई। ब्लैक में टिकट बेचकर लोगों ने फ्लैट खरीद लिए- असरानी मुंबई के मिनर्वा थिएटर में फिल्म 70 एमएम पर्दे पर चल रही थी। आसपास के लोगों को सिक्के गिरने की आवाज सुनाई दे रही थी। वह फिल्म का ही सीन था, लेकिन लोगों को लग रहा था कि दर्शक फिल्म देखकर सिक्के फेंक रहे हैं। दर्शक थिएटर में आने लगे। आज भी लोग जेलर के रोल से पहचानते हैं असरानी कहते हैं, मैं अभी जनवरी में कोटा के पास एक गांव में शूटिंग कर रहा था। सभी गांव वाले इकट्ठा हो गए। उसमें एक चार साल की छोटी सी बच्ची थी। प्रोड्यूसर ने बताया कि बच्ची और उसकी मां मिलना चाहती है। मुझे लगा कि चार साल की छोटी सी बच्ची क्या किसी एक्टर को पहचानेगी, लेकिन वह बच्ची मुझे देखती ही बोली वो असरानी जेलर। मुझे लगता है कि यह एक किरदार की जीत है।
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