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    Home»bollywood»रफ़ी-मुकेश के सामने ‘किशोर कुमार’ बन जाना कितना आसान था…संघर्ष-स्वाभिमान-सफलता की वो दास्तां
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    रफ़ी-मुकेश के सामने ‘किशोर कुमार’ बन जाना कितना आसान था…संघर्ष-स्वाभिमान-सफलता की वो दास्तां

    MiliBy MiliAugust 4, 2025No Comments7 Mins Read
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    रफ़ी-मुकेश के सामने ‘किशोर कुमार’ बन जाना कितना आसान था…संघर्ष-स्वाभिमान-सफलता की वो दास्तां

    किशोर कुमार की गायकी की सबसे बड़ी खूबी सरलता में जटिलता का आभास है. मो. रफ़ी, तलत महमूद और मुकेश के मुकाबले उनके गाये गानों को गाना बहुत ही आसान समझा गया. लेकिन कोई भी संगीत प्रेमी जब ऐसा अभ्यास करते तो किशोर दा की खूबी की रत्ती भर भी बराबरी नहीं कर पाते. फिर उन्हें समझ आता कि किशोर को दुहराना कितना आसान है या फिर कितना कठिन. वास्तव में किशोर कुमार की पूरी शख्सियत भी इसी सरलता में जटिलता का अहसास कराने वाली भी रही है. रफ़ी या मुकेश जैसे दिग्गज गायकों के बीच अलग पहचान बनाना किसी भी नये गायक के लिए आसान नहीं हो सकता था. यह किशोर कुमार के लिए भी मुश्किल था.

    किशोर कुमार की गायकी की एक खूबी यह भी थी कि वह शास्त्रीयता की बंदिशों को पूरी आजादी के साथ तोड़ते थे लेकिन उसकी अहमियत को पूरी शिद्दत के साथ स्वीकार भी करते थे. उन्होंने शास्त्रीयता को कभी अलविदा नहीं कहा, बल्कि उसे लोकप्रिय बनाया, जन-जन की जुबान तक पहुंचाने का काम किया. ऐसा पार्श्व गायन बहुत आसान नहीं था. उनकी गायकी की एक विशेषता यह भी है कि उनके गाने कोई भी किसी भी अवस्था में गा सकता है. किसी औपचारिकता की जरूरत नहीं.

    शास्त्रीयता की बंदिशें तो़ड़ बने लोकप्रिय गायक

    गौरतलब है कि किशोर कुमार जब खंडवा और इंदौर होते हुए मुंबई पहुंचे तो उस वक्त उनके सामने दिग्गज गायकों के कई शिखर जगमगा रहे थे. कुंदनलाल सहगल को सुनकर मो. रफ़ी और मुकेश अपनी-सी ऊंचाई हासिल कर चुके थे तो तलत महमूद की ख्याति भी फैल चुकी थी. लेकिन इन जैसे गायकों के बीच अपना-सा मुकाम बना लेना बहुत आसान नहीं था. किशोर कुमार ने अपनी अलग पहचान बनाने के लिए जितने जतन किये, वे उनके संघर्ष के दौर के अहम पड़ाव हैं.

    संजीव कुमार की फिल्म पति पत्नी और वो में उनका गाया एक गाना है- ठंडे ठंडे पानी से नहाना चाहिए… यह हास्य रस प्रधान गाना है. उनके तमाम लोकप्रिय और महान गानों से बिल्कुल अलग मिजाज का है. लेकिन इस गाने की अगली पंक्ति है- गाना आए या न आए गाना चाहिए. यकीनन किशोर कुमार के गीतों को दुहराते हुए भी तमाम लोग इसी भाव से भर जाते हैं. और जब दुहराते हैं तब अहसास होता है कि सही-सही गाने के लिए शास्त्रीयता का ज्ञान और रियाज कितना जरूरी है. किशोर कुमार भी शास्त्रीयता के ज्ञान परिपूर्ण थे और रियाज भी बचपन से ही करते थे.

    गाना आए या न आए किशोर को गा सकते हैं

    किशोर कुमार का एक और गाना उल्लेख कर रहा हूं- इक चतुर नार करके शृंगार…हम मरत जात वो हंसत जात… यह भी हास्य रस का बोध कराने वाला गाना है. फिल्म पड़ोसन का यह गाना हास्य अभिनेता महमूद और सुनील दत्त पर फिल्माया गया था. महमूद के बगल में वहां सायरा बानो भी मौजूद रहती हैं. महमूद को पार्श्व स्वर दिया था मन्ना डे ने और सुनील दत्त को पार्श्व स्वर दे रहे थे- किशोर कुमार. यह गाना राजिन्दर क्रृष्ण ने लिखा था और संगीत दिया था राहुलदेव बर्मन ने.

    बहुत ही दिलचस्प और हास्य बोध से परिपूर्ण इस गाने को गौर से सुनिये. दो पक्षों में सुरों का संग्राम छिड़ा है. मन्ना डे शास्त्रीयता को बनाये रखने के पक्षधर हैं… सुर किधर गया जी… सुर फिर भटकाया… लेकिन वहीं किशोर कुमार की गायकी में एक अलग किस्म की आजाद ख्याली है… वह हर क्लासिकी की बंदिश को तोड़ते हैं- वो सामने वाले की लंबी तान पर कटाक्ष करते हैं- ओ टेढ़े, सीधे हो जा रे…सीधे हो जा रे… और फिर एक अलग सुर स्थापित करते हैं.

    क्लासिकी और पॉपुलर का दिलचस्प सुर संग्राम

    चतुर नार… गाने के अंत में यह समझ पाना मुश्किल होता है कि क्लासिकी और पॉपुलर में आखिरकार जीत किसकी हुई. क्लासिकी अपनी जगह और पॉपुलर अपनी जगह. इसी तरह किशोर कुमार अपने करियर में भी मुकेश, रफ़ी या तहत महमूद के बरअक्स अपनी अलग छाप तैयार करते हैं. उन्होंने बहुत पहले ही भांप लिया था कि अगर अपनी पहचान बनानी है तो इन मशहूर गायकों की परंपरा से हटकर गाना होगा. पहले एसडी बर्मन फिर आरडी बर्मन और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे संगीतकारों ने उनकी इस प्रतिभा को ज्यादा से ज्यादा निखारी.

    गौरतलब है कि किशोर कुमार सन् पचास से साठ के बीच फिल्मों में ज्यादातर हास्य किस्म की भूमिकाएं किया करते थे. ऐसे में उनकी गायकी को तब बहुत उतनी गंभीरता से नहीं लिया गया था, जितनी प्रतिष्ठा अन्य गायकों की थी. लेकिन सन् 1956 में फंटूश में देव आनंद पर फिल्माया गया एकल गीत- दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना… जहां नहीं चैना, वहां नहीं रहना… के आते ही उनके बारे में नजरिया बदल गया. उन्हें देव आनंद की फिल्मों में गाने मिलने लगे. आगे चलकर राजेश खन्ना की फिल्म आराधना में जब रूप तेरा मस्ताना… प्यार मेरा दीवाना… गाया तो गलियों के बादशाह गायक बन गये. वहीं जिंदगी इक सफर है सुहाना के यूडलिंग ने उनको लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया.

    भाई अशोक कुमार-अनूप कुमार की मिली मदद

    हां, यह सही है कि किशोर कुमार को फिल्म इंडस्ट्री में काम हासिल करने के लिए उस तरह से भागदौड़ नहीं करनी पड़ी जैसे कि तमाम नये कलाकारों को करना पड़ता है क्योंकि उनके भाइयों में अशोक कुमार और अनूप कुमार वहां पहले से मौजूद थे और अपनी-अपनी पहचान बना चुके थे. दोनों अभिनेता थे. लिहाजा भाइयों को यही अपेक्षा थी कि किशोर कुमार भी एक प्रसिद्ध अभिनेता बनें जैसे कि दिलीप कुमार आदि. भाइयों का मान रखने के लिए किशोर कुमार ने गाने गाते हुए फिल्मों में अभिनय किया और बाद के दौर में फिल्में बनाई भी. उनकी बनाई फिल्म चलती का नाम गाड़ी भी काफी अहम है. लेकिन उनके अभिनय से कहीं ज्यादा उनकी गायकी मशहूर होने लगी तो उन्होंने गाने पर ही फोकस किया.

    अक्सर ये कहा जाता है कि सन् 1976 में मुकेश के निधन और 1980 में मो. रफी के इंतकाल के बाद किशोर कुमार को अधिक लोकप्रियता मिली, लेकिन यह आधा-अधूरा सच है. 1976 से पहले किशोर कुमार बतौर लोकप्रिय पार्श्वगायक स्थापित हो चुके थे. देव आनंद, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना जैसे गायकों की सुपरहिट फिल्मों में गा चुके थे. किशोर कुमार ने मो. रफी के साथ कई गाने गाये हैं. अमिताभ बच्चन शत्रुघ्न सिन्हा की फिल्म दोस्ताना में साथ-साथ गा चुके थे- बने चाहे दुश्मन जमाना हमारा… वहीं इससे पहले अमर अकबर एंथोनी में तो तीनों एक साथ ही एक गाने को गा चुके थे- हमको तुमसे हो गया है प्यार क्या करें... इस गाने पर अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना और ऋषि कपूर ने अभिनय किया था.

    स्वाभिमानी शख्सियत के दो अहम उदाहरण

    अशोक कुमार की शख्सियत के कई रंग हैं. जितने अच्छे गायक और मस्तमौला इंसान थे, उतने ही स्वाभिमानी भी. अपनी कलात्मक आजादी में राजनीतिक दखल उन्हें मंजूर नहीं था. आपातकाल के दौरान संजय गांधी की राजनीतिक सभा में जाने से इनकार करने पर उनके गाने रेडियो पर प्रतिबंधित कर दिये गये, फिर भी उन्होंने अपना स्वाभिमान नहीं खोया. उन्होंने कोई समझौता नहीं किया. इसी तरह एक बार अमिताभ बच्चन के साथ भी उनका विवाद हुआ, जबकि बिग बी के लिए उन्होंने मुकद्दर का सिकंदर के अलावा कई फिल्मों में तमाम गाने गाये थे.

    संक्षेप में कहानी इस प्रकार है. 1981 में किशोर कुमार एक फिल्म बना रहे थे- ममता की छांव. उन्होंने इसमें अमिताभ से एक गेस्ट रोल करने की गुजारिश की. लेकिन व्यस्तता का हवाला देकर अमिताभ ने इनकार कर दिया. यह बात किशोर कुमार को तकलीफ पहुंचा गई. इसके बाद सन् 1984 में शराबी फिल्म का वाकया सामने आया. इस फिल्म में एक गाना जहां चार यार मिल जाएं वहीं रात हो गुलजार.. की रिकॉर्डिंग के दौरान दोनों में तनाव दिखा. नामावली में पहले नाम आने को लेकर भी विवाद हुआ.

    फिल्म इंडस्ट्री में वरिष्ठता की बात करें तो किशोर कुमार वहां पहले से थे और अमिताभ बाद में आए थे लेकिन जिस वक्त शराबी आई उस वक्त अमिताभ लोकप्रियता के शिखर पर थे. किशोर कुमार को उनका नाम नीचे लिखा जाना पसंद नहीं आया. इसके बाद उन्होंने अमिताभ बच्चन के लिए गाना बंद कर दिया. हालांकि गिले-शिकवे भुलाकर दोनों एक बार फिर मिले. मनमोहन देसाई एक फिल्म बना रहे थे- तूफान. इस फिल्म का एक गाना आया आया तूफान… भागा भागा शैतान… किशोर कुमार ने गाया. यह फिल्म सन् 1989 में रिलीज हुई. लेकिन उससे दो साल पहले 1987 में ही उनका निधन हो चुका था. किशोर कुमार का यह आखिरी गीत माना जाता है.

    यह भी पढ़ें :शाहरुख खान का अगला कदम Jawan 2 बनी तो दिखाएंगे ऑपरेशन स्विस बैंक?

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