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    Home»bollywood»‘सरकटा सिनेमा’ का ट्रेंड समाप्त! सैयारा ने बदल दिये मौजूदा सुपरहिट के सारे समीकरण, इंडस्ट्री में अब आगे क्या?
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    ‘सरकटा सिनेमा’ का ट्रेंड समाप्त! सैयारा ने बदल दिये मौजूदा सुपरहिट के सारे समीकरण, इंडस्ट्री में अब आगे क्या?

    MiliBy MiliJuly 25, 2025No Comments8 Mins Read
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    ‘सरकटा सिनेमा’ का ट्रेंड समाप्त! सैयारा ने बदल दिये मौजूदा सुपरहिट के सारे समीकरण, इंडस्ट्री में अब आगे क्या?

    इसे इत्तेफाक कहें या कुछ और कि पिछले कुछ समय से हिंदी फिल्मों में शब्द और संवेदना को सिरे खारिज करके सीधे सिर यानी Head को टारगेट किया गया. शुक्र है सैयारा से खोया इमोशन वापस आया है. थिएटर में युवा पीढ़ी लौटी, जो ओटीटी से चिपकी थी. राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर की फिल्म स्त्री 2 याद होगी, इसमें सरकटा का खौफ भी जरूर याद होगा. वह कॉमेडी हॉरर थी. लेकिन संदेश साफ था. सरकटा- एक ऐसा पिशाच, जिसके पास दिल और दिमाग नहीं होता. वह केवल हमला करना जानता है. वह मॉडर्न ड्रेस पर हमला करता है, प्रगतिशील सोच पर हमला करता है. उसे रूढ़ियों में जकड़े रहना ज्यादा पसंद है. जो स्त्री रूढ़ियां तोड़ती है उसका वह अपहरण कर लेता है. कुल मिलाकर सरकटा एक किस्म की हिंसक मानसिकता से ग्रस्त है. कोई आश्चर्य नहीं कि एनिमल का नायक भी कुछ ऐसी ही सोच वाला था जो स्त्री का सम्मान नहीं करता था. जो उससे सहमत नहीं- वह उसके निशाने पर था.

    इसी समय अक्षय कुमार भी सिरफिरा लेकर आते हैं हालांकि परेशानी इससे नहीं है. हिंदुस्तानी समाज को असली परेशानी उदयपुर फाइल्स जैसी फिल्मों से भी है, जिसमें सिर काटने जैसा प्रतिशोध दिखाया गया. यह फिल्म फिलहाल अटकी है वरना ‘सर तन से जुदा’ का मुहावरा एक बार फिर सुर्खियों में शुमार होता. यह भी इत्तेफाक ही है कि जब यह पंक्ति वारयल हुई, उसके बाद से सिनेमा के पर्दे पर धड़ाधड़ सिर काटने के सीन फिल्माने का चलन बढ़ गया. क्रूरता हर हद पार करने लगी थी. ऐसी फिल्मों के नाम गिनाऊं तो पुष्पा, एनिमल, किल, कंतारा, केजीएफ, महाराजा, सिकंदर, जाट और हाल की मालिक आदि ने पर्दे पर ना जाने कितने खून बहाये, उसका कोई हिसाब नहीं.

    सैयारा मौके पर इमोशन का चौका

    जाट फिल्म में सनी देओल ने हथियार से उसी तरह अनगिनत गर्दनें काटीं जैसे किसान खेतों में फसलें काटते हैं. पुष्पा और एनिमल के ब्लॉकबस्टर होने के बाद यह धारणा बना ली गई कि जिस फिल्म के डायरेक्टर दक्षिण के होंगे और जिसमें नेक्स्ट लेवल का वॉयलेंस दिखाया जाएगा, वह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट हो जाएगी. लेकिन जैसे ही दर्शकों का मिजाज बदला, लोग खून-खराबा वाले दृश्यों से ऊबने लगे तो टीम सैयारा ने मौके पर इमोशन का चौका लगा दिया. सोशल मीडिया प्रेमी युवा लट्टू हो गए. सैयारा की टाइमिंग बहुत ही परफेक्ट है. गेंद बल्ले पर सही जगह पड़ी और खिलाड़ी को सिक्स लगाने में देरी नहीं लगी. दर्शकों को भला और क्या चाहिए. नतीजा बीस से पच्चीस साल के युगलों की भीड़ उमड़ पड़ी.

    वास्तव में पहले ओटीटी से मुकाबला करने के लिए बॉलीवुड वालों ने जिस तरह से हिंसा और खून खराबा वाली कहानियों का सहारा लिया, अब सैयारा की दस्तक ने उस हिंसात्मक चित्रण को दरकिनार कर दिया है. हम जानते हैं कि हिंसा आधारित फिल्मों की उम्र लंबी नहीं होती. हाल में कई ऐसी फिल्में आईं जिसने वायलेंस को तरजीह नहीं दी थी, फिर भी दर्शकों का दिल जीता. मसलन राजकुमार राव की भूल चूक माफ और अनुराग बासु की हालिया फिल्म मेट्रो इन दिनों. भूल चूक माफ दिल को तवज्जो देती है, सकारात्मकता सिखाती है तो मेट्रो इन दिनों संगीतमय प्रस्तुति बनकर सामने आती है. यह फिल्म भी इमोशनल बनाती है. और इन दोनों फिल्म के ठीक बाद सैयारा ने सिनेमा हॉल का माहौल ही बदल दिया. सीटियां, तालियां, आंसू और सिसिकियां सबकुछ दिखा.

    फिल्म ने सारे समीकरण ही बदल दिये

    हम कह सकते हैं कि सैयारा ने मौजूदा दौर में सुपरहिट फिल्मों के सारे समीकरण ही बदल दिये हैं. इस साल छावा के बाद सैयारा दूसरी ऐसी फिल्म है जिसे देखने के लिए भारी संख्या में दर्शक थिएटरों में लौटे हैं. बॉक्स ऑफिस पर करोड़ों बरस रहे हैं. हालांकि इस फिल्म में कोई नयापन नहीं है. लव स्टोरी हिंदी फिल्मों का स्थायी भाव है. सालों साल से वही कहानी दुहराई-तिहराई जा रही है. सिंगर मेल प्रोटोगोनिस्ट भी कोई नई बात नहीं. एक जमाने में स्ट्रीट सिंगर, बैजू बावरा और तानसेन जैसी फिल्में आती थीं तो वही धीरे-धीरे समय के हिसाब से कभी डिस्को डांसर बना तो कभी रॉकस्टार. सैयारा का हीरो भी रॉकस्टार बनने के ख्वाबों से लैस है.

    डायरेक्टर मोहित सूरी और राइटर्स की टीम ने इस फिल्म में समय को ध्यान में रखते हुए युवाओं के जज्बात से खेलने की भरपूर कोशिश की है. इसमें उन्हें सफलता मिली है. एनिमल और जाट टाइप हिंसा वाले सरकटा सिनेमा से ऊबे हुए दर्शकों को मोहित सूरी प्रभावित करने में कामयाब हुए हैं. फिल्म में वाणी बत्रा के रोल में अनीत पड्डा शुरुआत से ही शब्द और संवेदना की वकालत करती है. वह आज की सोशल मीडिया वाली एग्रेसिव पीढ़ी से थोड़ी अलग मिजाज की है. सोशल मीडिया एंफ्लुयंसर और रॉकस्टार के मानदंड पर थोड़ी स्लो है. वह बाजार की मांग के मुताबिक गाने तो लिख देती है लेकिन उसके बीच में रैप नहीं लिख पाती.

    सैयारा की नायिका भावुकता को तरजीह देती है

    चूंकि वह साहित्य और पत्रकारिता की छात्रा रही है. शब्द और भावों को ज्यादा तरजीह देती है. वह ठहराव और गहराई की बात करती है. वहीं दूसरी तरफ युवक कृष कपूर के रोल में अहान पांडे आक्रोश से भरा स्ट्रगलर है. वह संघर्ष में तपा और घिसा है. नेपोटिज्म पर गुस्सा निकालता है. नेपो किड्स को मीडिया में मिलने वाले स्पेस के मुकाबले खुद की उपेक्षा से परेशान है. इसलिए उसे वाणी की भावुकता कोरी लगती है. इसके बावजूद आगे चलकर दोनों में तालमेल बनता है. जब दोनों एक-दूसरे की तकलीफें और संघर्ष को जानते हैं तो धीरे-धीरे दोनों साथी बन जाते हैं. जैसे कि शब्द को धुन की जरूरत होती है और धुन को शब्द की. तभी संगीत बनता है. फिल्म में एक जगह कृष कपूर यही संवाद कहता भी है.

    यह कांसेप्ट लोगों को पसंद आया. पूरकता को परिभाषित किया गया था. फिल्म में जब वाणी को पता चलता है कि कृष कितने सामान्य परिवार से है, उसका बाप शराबी है, उसकी मां नहीं है और प्रतिभाशाली होकर भी एक रॉकस्टार बनने के लिए उसे कितना संघर्ष करना पड़ रहा है. वहीं जब कृष को यह पता चलता है कि वाणी को पूर्व प्रेमी ने धोखा दिया था, उसका दिल टूटा है, अल्जाइमर से पीड़ित है, उसे भूलने की बीमारी है, मां-बाप उसके भविष्य के लिए चिंतित हैं तो इस हालात में दोनों एक-दूसरे के प्रति इमोशनल होते जाते हैं. एक दूसरे की जरूरत बनते जाते हैं और एक समय के बाद पूरक हो जाते हैं. फिल्म के आखिरी सीन दर्शकों को भावुक बना देते हैं.

    इंटरनेट जेनेरेशन को लुभाती फिल्म

    वास्तव में आज की वह युवा पीढ़ी जो अपना ज्यादातर समय सोशल मीडिया पर बिताती है, रील, वीडियो, इंफ्लुएंसर्स की मोटिवेशनल बातों को सुनने की आदी है और जो कंटेंट क्रिएटर्स की हल्की-फुल्की संवेदनाओं की लहरों में बह जाती है, उनको सैयारा खूब पसंद आ रही है. थिएटर में सैयारा देखने वाले वैसे नवयुवक और नवयुवतियों की संख्या सबसे ज्यादा है. इंटरनेट जेनरेशन को यह सबकुछ इस फिल्म में देखने को मिला तो टूट पड़े. जबकि यह तथ्य भी सामने आ चुका है कि सैयारा साउथ कोरिया की फिल्म ए मोमेंट टू रिमेंबर की नकल है, इसके बावजूद युवा दर्शकों पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा.

    सैयारा के बाद लव स्टोरी की फेहरिस्त

    अब अहम सवाल ये हो जाता है कि सैयारा के बाद क्या? खबर है इस साल से लेकर अगले साल तक प्रेम कहानियों वाली फिल्मों की लंबी फेहरिस्त तैयार हो गई है. इनमें कुछ तो बहुत जल्द देखने को मिलने वाली है. मसलन सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी की धड़क 2, सिद्धार्थ मल्होत्रा और जान्हवी कपूर की परम सुंदरी के अलावा सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी, लव एंड वॉर, आवारापन 2, तेरे इश्क में धनुष, है जवानी तो इश्क होना है, और तू मेरी मैं तेरा, मैं तेरी तू मेरा वगैरह. आने वाली फिल्मों की सूची क्या बताती है. हम कह सकते हैं कि सैयारा की लोकप्रियता से बॉलीवुड में एक बार फिर से प्रेम कहानी की वापसी हुई. यह आज के जमाने की प्रेम कहानी है. यहां शब्द, संवेदना, भावुकता और गीत-संगीत की भी वापसी हुई.

    सैयारा की सफलता ने यह भी साबित किया कि युवा संवेदना की कहानी दर्शक युवा कलाकारों के जरिए ही देखना पसंद करते हैं. कल्पना कीजिए सैयारा में अहान और अनीत के बदले अगर सलमान खान और करीना कपूर जैसे ज्यादा उम्र के कलाकार होते तो युवा दर्शक इनसे कितना रिलेट कर पाते. बिल्कुल नये कलाकारों वाली सैयारा की सफलता ने फिल्म इंडस्ट्री में यह सीधा मैसेज दिया है. जैसी कहानी, उस उम्र के कलाकार चाहिए. सुभाष घई जैसे दिग्गज फिल्मकार ने भी इसकी प्रशंसा की है. उन्होंने भी कहा कि बिग बजट और बिग स्टार की जरूरत नहीं. उन्होंने इसे फिजूलखर्जी बताया है. आने वाले समय में सैयारा का यह प्रभाव भी देखने को मिल सकता है. कम बजट और युवा कलाकारों वाली फिल्में ज्यादा बन सकती हैं.

    यह भी पढ़ें :Saiyaara की कहानी किस विदेशी फिल्म से मिलती है, ओरिजिनल के नाम पर इंस्पिरेशन का खेल क्या कहलाता है?

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